दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥ लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर https://shiv-chalisa-lyrics-engli57902.birderswiki.com/904847/shiv_chalisa_lyrics_pdf_an_overview